भारत की इस धरा ने – हमारी साँस्कृतिक परंपराने कई महापुरुषो, संतो, शूरवीरो, बौद्धिको, महान तत्ववेत्ताओ को जन्म दिया है। पर इस परंपरा को खडी करने और इतने सारे महान चरित्रो का संगोपन कैसे किया होगा यह हमने कभी सोचा है क्या? हमारे प्राचिन ऋषिओंने इसके लिये अथाग परिश्रम उठाया है। समाज स्वस्थ – निरोगी बने इसके लिये आज कई सामाजिक, धार्मिक संस्थान और खुद सरकार भी चिंतित और कार्यरत है। अरबो रुपियो का बजट हमारे आरोग्य की रक्षा के लिये सरकार और आंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ खर्च करती है। भिन्न-भिन्न प्रकार के केम्प, सहाय, जागृकता बढें इसके लिये विज्ञापन, फरजियात टीकाकरण द्वारा बहुत ही जोरो से प्रयत्न होता रहता है। कभी कभी इसके परिणमो की और नजर करें तो प्रयत्न के सामने परिणाम बहुत ही अल्प मात्रा में दिखता है । समाज में शारीरिक स्वस्थता के प्रति जागरुकता बढी है, पर मानसिक स्वस्थता का क्या?
उसके लिये कभी किसीने विचार किया है क्या?……
मानसिक अस्वस्थ, निर्माल्य एवं असंस्कारी समाज अगर दीर्घायुष्य पाता है तो आशिर्वाद के बदले शाप ही होगा. समग्र विश्वमें सबसे प्राचिनतम और समग्र विश्वको मार्गदर्शन देने के साथ साथ आधुनिक विज्ञान को अति महत्वपूर्ण सिद्धांतो की भेंट करनेवाले आयुर्वेद के सिद्धांत आज भी वैसे के वैसे ही असरकारक है । इसके सामने आधुनिक चिकित्सा विज्ञानमें हर पाँच साल में उनकी मान्यता को खुद ही मिटाते है । पाँच साल पहले का अमृततुल्य औषध आज जहर बन जाता है। कभी बच्चे को माँ का दूध नहीं देना चाहिये ऐसा कहने वाले लोग ही वही “माँ का दूध अमृततुल्य है” – यहाँ समजाने के लिये अरबो रुपयो का खर्च सरकार से करवाते है।
तो फिर, सही माने में स्वस्थ समाज कैसा होना चाहिये? इसकी कल्पना को हमारे प्राचिन ऋषिओने सिद्ध करके दिखाई है। उस समय भी आज की तरह आलसी लोग होंगे ही, वह स्वस्थ समाज को साकारित करने के लिये जागृत नहीं भी होंगे। तब के हमारे आचार्यो का यहाँ स्पष्ट मानना था कि कानून से लायी गई क्रिया लम्बे अरसे तक टीक नही पाती, ईसलिये अगर कोई बात या संस्कार को सदीयों तक जिवंत रखना है तो उसको समझ के साथ और भाव के साथ रखना ही उचित माना जायेगा। ईसलिये आरोग्य की रक्षा की सभी बातें हमारी परंपरा में, हमारे धार्मिक व्यवहार के भीतर और हमारे संस्कार के साथ साथ जोड दिया।
ईसलिये कई एसी बाते जो हमारी परंपरामें है, हमारा उसको भावपूर्ण या बडो का मान रखने के लिये भी करते है, पर उसके पीछे छूपा आरोग्य का जबरदस्त कारण हमारी समझ में से निकल गया है ।
आज हमारा ऐसे ही एक संस्कार की बात समझने की कोशिश करने जा रहे है, वह है सुवर्णप्राशन संस्कार…
हमारे घर कोई बालक का जन्म जब होता है तब, उसके पश्चात डोक्टर हमें बालक के स्वास्थ्य की रक्षा के तहत हमें भिन्न भिन्न समयावधि में टीका लगवाने (रसीकरण) का परामर्श देते है। नजदीक के भूतकाल मे संशोधित यह Vaccine का मूलभूत खयाल हजारों सालो से हमारी संस्कार परंपरा में ही है, पर हमें उसका ज्ञान नहीँ है। हमारे शरीर के अंदर भिन्न भिन्न रोगो का प्रतिकार करनेकी क्षमता यानि हमारी रोगप्रतिकारशक्ति (Immunity)ही हमें भिन्न भिन्न रोगों से बचाती है, जब यह शकित खतम हो जाती है तब हम रोगग्रस्त हो जाते है। यह क्षमता शरीर खुद ही पेदा करने की कोशिश करता है, और Vaccine उसको साथ देता है ।
आधुनिक विज्ञान ने कई रोगो के लिये Vaccine निकाली, और भी सँशोधन जारी है; यह एक नित्य चलनेवाला कार्य है। हमारे आचार्योने यही सिद्धांत से हजारो साल पहले सोच रखा था, और उन्होने सभी प्रकार के रोग के सामने शरीर रक्षण कर सके उसके लिये रोगप्रतिकार क्षमता ही बढनी चाहिये, यह बात को लेकर एक ही शस्त्र ढूँढ निकाला, वह यानि सुवर्ण – सोना; और ईसके लिये सुवर्णप्राशन संस्कार की हमें भेंट की । सुवर्ण यानि सोना (Gold) और प्राशन यानि चटाना ।
सुवर्ण ही क्यूँ??
सुवर्ण हमारे शरीर के लिये श्रेष्ठत्तम धातु है। वह ना ही केवल व्बालको के लिये है, पर वह सभी उंमर के लिये उतनी ही असरकारक और रोगप्रतिकार क्षमता बढानेवाली है। ईसीलिये तो हमारे जीवन व्यवहार में सदीयों से सुवर्ण का महत्व रहा है। उसकी हमारे शारीरिक और मानसिक विकार में महत्वपूर्ण प्रभाव होने के कारण ही उसको शुभ मान जाता है, उसका दान श्रेष्ठ माना गया है । हमारे पूर्वजो की स्पष्ट समज थी कि, सोना हमारे शरीरमें कैसे भी जाना चाहिये ! ईसलिये ही हमारे यहाँ शुद्ध सोने के गहने पहनने का व्यवहार है; कभी नकली गहने पहनने पर बुजुर्गो की डाँट भी पडती है। यही कारण से ही हमारे राजा और नगरपति – धनवान लोग सोने की थाली में ही खाना खाते थे, जिससे सुवर्ण घिसाता हुआ हमारे शरीर के भीतर जाये। सोने के गह्ने पहनना, सोना खरीदना, सोने का दान करना, सोने का संग्रह करना, सोनेकी थाली में खान यह सभी बातों में हमारे आचार्यो का अति महत्वपूर्ण द्रष्टिकोण रहा था कि, सोना शरीरमें रोगप्रतिकार क्षमता तो बढाता ही है, और उसके साथ-साथ हमारी मानसिक और बौद्धिक क्षमता भी बढाता है। यह शरीर, मन एवं बुद्धि का रक्षण करनेवाली अति तेजपूर्ण धातु है। ईसलिये तो पूरी दुनिया की Economy सुवर्ण पर निर्भर है। यही उसकी हमारे जीवन में महता का द्योतक है!!
सुवर्णप्राशन संस्कार कब और किसको?
सुवर्णप्राशन यह हमारे 16 संस्कारो में से एक है । हमारे यहाँ जब बालक का जन्म होता है तब उसको सुना या चांदी की शलाका (सली) से उसके जीभ पर शहद चटाने की या जीभ पर ॐ लिखने की एक परँपरा रही है। यह परंपरा का मूल स्वरूप याने हमारा सुवर्णप्राशन संस्कार। सुवर्ण की मात्रा चटाना यानि सुवर्णप्राशन। हम यह करते ही है पर हमें उसकी समझ नही है। यह कैसे आया और क्यूँ आया? इसका हेतु और परिणाम क्या है यह हमें पता नही था। सदीयो के बाद भी यह कैसे भी स्वरूप में टीकना यह कुछ कम बात नहीं है। उसके लिये हमारे आचार्योने कितना परिश्रम उठाया होगा, तब जाकर यह हमारे तक पहूँचा है। पर यहाँ समझने की कभी हमनें कोशिश की, ना हि किसी ने समझाने का कष्ट लिया है।
यह सुवर्णप्राशन सुवर्ण के साथ साथ आयुर्वेद के कुछ औषध, गाय का घी और शहद के मिश्रण से बनाया जाता है। और यह जन्म के दिन से शुरु करके पूरी बाल्यावस्था या कम से कम छह महिने तक चटाना चाहिये। अगर यह हमसे छूट गया है तो बाल्यावस्था के भीतर यानि 12 साल की आयु तक कभी भी शुरु करके इसका लाभ ले सकते है। यही हमारी परंपरा को पुष्टि देने के लिये ही बालक के नजदीकी लोग सोने के गहने या सोने की चीज ही भेंट करते है; शायद उस समय पर वो यही सुवर्णप्राशन ही भेंट करते होंगे।
सुवर्णप्राशन से क्या फायदा??
आयुर्वेद के बालरोग के ग्रंथ काश्यप संहिता के पुरस्कर्ता महर्षि काशयप ने सुवर्णप्राशन के गुणों का निम्न रूप से निरूपण किया है..
सुवर्णप्राशन हि एतत मेधाग्निबलवर्धनम् ।
आयुष्यं मंगलमं पुण्यं वृष्यं ग्रहापहम् ॥
मासात् परममेधावी क्याधिभिर्न च धृष्यते ।
षडभिर्मासै: श्रुतधर: सुवर्णप्राशनाद् भवेत् ॥
सूत्रस्थानम्, काश्यपसंहिता
अर्थात्,
सुवर्णप्राशन मेधा (बुद्धि), अग्नि ( पाचन अग्नि) और बल बढानेवाला है। यह आयुष्यप्रद, कल्याणकारक, पुण्यकारक, वृष्य, वर्ण्य (शरीर के वर्णको तेजस्वी बनाने वाला) और ग्रहपीडा को दूर करनेवाला है. सुवर्णप्राशन के नित्य सेवन से बालक एक मास मं मेधायुक्त बनता है और बालक की भिन्न भिन्न रोगो से रक्षा होती है। वह छह मास में श्रुतधर (सुना हुआ सब याद रखनेवाला) बनता है, अर्थात उसकी स्मरणशक्त्ति अतिशय बढती है।
यह सुवर्णप्राशन पुष्यनक्षत्र में ही उत्तम प्रकार की औषधो के चयन से ही बनता है। पुष्यनक्षत्रमें सुवर्ण और औषध पर नक्षत्र का एक विशेष प्रभाव रहता है। यह सुवर्णप्राशन से रोगप्रतिकार क्षमता बढने के कारण उसको वायरल और बेक्टेरियल इंफेक्शन से बचाया जा सकता है। यह स्मरण शक्ति बढाने के साथ साथ बालक की पाचन शक्ति भी बढाता है जिसके कारण बालक पुष्ट और बलवान बनता है। यह शरीर के वर्ण को निखारता भी है। ईसलिये अगर किसी बालक को जन्म से 12 साल की आयु तक सुवर्णप्राशन देते है तो वह उत्तम मेधायुक्त बनता है।
और कोई भी बिमारी उसे जल्दी छू नही सकती।
छह मास तक का प्रयोग :-
सही मात्रा और औषध से बना हुआ सुवर्णप्राशन अगर किसी भी बालक को छह मास तक नियमित रूप से दिया जाये तो वह “श्रुतधर” मतलब कि एक बार सुना हुआ उसको याद रह जाता है । अगर हम इसको आज के परिप्रेक्ष्य में तो उसकी याददास्त अवश्य ही बढती है। और स्वस्थ और तेजस्वी भारत के निर्माण में यह संस्कार हमारे लिये एक बहुत ही महतवपूर्ण बात है। इसके लिये 12 साल तक की उम्र के किसी बालक को कभी भी शुरु करवा सकते है। और कम से कम छह महिने तक इसका सेवन करवाना चाहिये। और इसके लिये पुष्यनक्षत्र में ही तैयार करना बहुत ही लाभप्रद रहता है।
सुवर्णप्राशन के होने वाले लाभ को हम निम्न रूप से विभाजीत कर सकते है….
· Strong immunity Enhancer : Suvarnaprashan builds best resistant power and prevents from infections and makes child stronger . बालक की रोगप्रतिकार क्षमता बढती है, जिसके कारण अन्य बालको की तुलना वह कम से कम बिमार होता है। ईस प्रकार तंदुरस्त रहने के कारण उसको एन्टिबायोटिक्स या अन्य दवाईया देने की जरूरत न रहने से उसको बचपन से ही उस दवाईयाँ के दुष्प्रभाव से बचा सकते है।
· Physical development : Suvarnaprashan helps in physical development of your child. सुवर्णप्राशन बालक के शारिरीक विकास को बढाता है।
· Memory Booster : It contains such Herbs which helps your child for memory boosting and it improves Grasping Power also. यह सुवर्णप्राशन स्मरणशक्ति और धारणशकित बढानेवाले कई महत्वपूर्ण औषध से बना है। मतलब यह की इसके कारण वह ज्यादा तेजस्वी बनता है।
· Active and Intellect : शारिरीक और मानसिक विकास के कारण वह ज्यादा चपल और ज्यादा बुद्धिशाली बनता है।
· Digestive Power : Suvarnaprashan is a best appetizer and have digestive properties also. पाचनक्षमता बढाता है जिसके कारण उसको पेट और पाचन संबंधित कोई तकलीफ़ नही रहती ।
· Tone ups Skin color : बालक के वर्ण में निखार आता है ।
भारतीय संस्कृति के 16 संस्कारो में से एक यहाँ संस्कार की महत्ता को समझकर प्रत्येक बालक को कम से कम एक बार जीवन में देना चाहिये।
सुवर्णप्राशन की प्राप्ति कहाँ से और कैसे?
महर्षि काश्यप ने अपने ग्रंथ काशपय संहितामें बताये हुए सभी औषध और शास्त्रानुसार पूर्ण मात्रा में सुवर्ण के संयोजन से केवल पुष्यनक्षत्र में हमारे चिकित्सालय में बनाया जाता है। आप ताजा ही पा सके ईसके लिये हम ओर्डर से ही बनाते है। जिसके कारण हम अच्छे से अच्छा परिणाम प्रापत कर सके। हमारे यहाँ से दी जाने वाली सभी औषध केवल हमारे ही निजी उपयोग के लिये बनाते है जिसके कारण उसकी गुणवत्ता के बारे में खुद हमें भी कभी संदेह नही रहता । बाकी तो आप खुद ही उपयोग और परिणाम मिलने पर बतायेंगे।
* हमने यह सुवर्णप्राशन एक बालक छ महिने तक लगातार ले सके वो मात्रा में पैक बनाया है, और उसके साथ बालक को चटाने के लिये चाँदी की शलाका (सली) भी सामिल है। वह अलग अलग उम्र के बालक को अलग अलग मात्रा में (सूचनानुसार) देना होता है।
* आप हमें मेल या फोन द्वारा सूचित कर के आप के यहाँ मंगवा सकते हो।
कुछ स्पष्टताएँ …
· सुवर्णप्राशन आजकल बाजार में भी कई फार्मसीने और कई unqualified लोग भी पिलाते है। वह लोग महिने में केवल एक ही दिन यानि की पुष्यनक्षत्र के दिन या उनकी अनुकुलता के अनुसार उस दिन को पिलाते है। उसके संदर्भ में सुवर्णप्राशन की गुणकारिता के संदर्भ में आपको कभी भी संदेह न हो इसलिये कुछ स्पष्टताएँ करना मुझे जरूरी लगता है..
1. केवल महिने में एक बार पिलाने से कभी उपरोक्त श्लोक के अनुसार लाभ मिलना संभव नहीं है।
2. कभी केवल 20-30 या 100 रूपयो में एक महिना चले ऐसी मात्रा में सुवर्णप्राशन की बोटल बेचते भी है, पर 32000 रु. 10 ग्राम बिकने वाला सोना इतने दाम में कितना आयेगा और कितनी उसकी असरकारकता होगी और कितना उनका मुनाफा होगा? ऐसा ही सब करते रहेंगे तो आयुर्वद के हमारे प्राचीन ऋषिओ की स्वस्थ – निरोगी बालक और स्वस्थ निरोगी समाज की कल्पना कब साकारित होंगी। बल्कि हमारा आयुर्वेद के प्रति आदर कम हो जायेगा और विश्वास नही रहेगा। आयुर्वेद के औषध की असरकारकता उसकी गुणवत्ता पर ही आधारित है।
3. सुवर्णप्राशन दिन में किसी भी समय केवल एक ही बार देना है और उसको फ्रीज में रखने कि जरुरत नही है। यह किसी भी बिमारी मेँ किसी भी औषधे के साथ भी ले सकते है।
4. अगर आप आपके बालक को या अपने स्नेही के बालक को जन्म समय से देना चाहते हो तो गर्भावस्था के अंतिम महिने में मँगवाकर रखे और जन्म से ही शुरु करें।
आपका सुझाव और पृच्छा आवकार्य है।
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