🩺 न्यूराल्जिया (नाड़ी शूल / नाड़ी वेदना) – आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से
परिचय
न्यूराल्जिया एक प्रकार का नाड़ी संबंधी तीव्र दर्द (Nerve Pain) है, जिसमें दर्द अचानक, चुभने वाला, या बिजली के झटके जैसा महसूस होता है।
 यह तब होता है जब कोई नाड़ी (nerve) दब जाती है, सूजन आ जाती है या उसमें विकार होता है।
 आयुर्वेद में इस अवस्था को नाड़ी शूल या नाड़ी वेदना कहा गया है, जो मुख्यतः वात दोष के प्रकोप से उत्पन्न होती है।
 न्यूराल्जिया के कारण
न्यूराल्जिया के कारण
आधुनिक कारण:
- नाड़ी पर दबाव (हड्डी, रक्तवाहिका या ट्यूमर से)
- संक्रमण (जैसे हर्पीज ज़ोस्टर – Postherpetic Neuralgia)
- मधुमेह (Diabetic Neuropathy)
- चोट या आघात
- ऑटोइम्यून विकार (Multiple sclerosis)
- ठंडी या नम जलवायु में रहना
आयुर्वेदिक कारण (निदान):
- अत्यधिक उपवास या अधिक परिश्रम
- प्राकृतिक वेगों (मूत्र, मल, छींक आदि) को रोकना
- ठंडी हवा का प्रभाव
- वात-वर्धक आहार (सूखा, ठंडा, हल्का)
- मानसिक तनाव, भय, चिंता
- चोट या अस्वाभाविक आसन
इन सभी कारणों से वात दोष बढ़ता है, जो नाड़ी मार्गों (nerve channels) में प्रवेश कर तीव्र दर्द (शूल) उत्पन्न करता है।
न्यूराल्जिया के प्रकार
- ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया – चेहरे और जबड़े में अचानक दर्द।
- ऑक्सिपिटल न्यूराल्जिया – सिर के पीछे और गर्दन के ऊपरी हिस्से में दर्द।
- इंटरकोस्टल न्यूराल्जिया – पसलियों के बीच और छाती में दर्द।
- पोस्टहर्पेटिक न्यूराल्जिया – हर्पीज़ (shingles) के बाद शेष दर्द।
- पेरिफेरल न्यूराल्जिया – हाथ-पैर की नसों में दर्द, अधिकतर मधुमेह या विषाक्तता से।
लक्षण
- अचानक, तेज़, झटके जैसा या जलनयुक्त दर्द
- दर्द किसी एक नाड़ी के मार्ग में फैलता है
- हल्के स्पर्श, हंसी, बोलने या तापमान परिवर्तन से दर्द बढ़ना
- झुनझुनी, सुन्नपन या जलन
- कभी-कभी मांसपेशियों में कमजोरी या स्पंदन
आयुर्वेदिक रोगक्रिया (सम्प्राप्ति)
- वात दोष का प्रकोप ठंडे, सूखे, या अपच्य आहार से होता है।
- यह वात नाड़ी मार्ग में प्रवेश करता है।
- नाड़ी में संकुचन (स्पाज़्म) और वेदना (दर्द) उत्पन्न करता है।
- यदि आम (अर्ध-पचित विषद्रव्य) मिल जाए तो दर्द आमवात जैसा हो जाता है — भारी और लगातार।
आयुर्वेदिक निदान
- नाड़ी परीक्षा (Pulse Diagnosis) से वात की स्थिति जानी जाती है।
- वात प्रधान: चुभने या स्थान बदलने वाला दर्द
- पित्त प्रधान: जलन या गर्मी के साथ दर्द
- कफ प्रधान: भारीपन या जकड़न के साथ दर्द
आयुर्वेदिक उपचार
मुख्य उद्देश्य — वात शमन, नाड़ी पोषण, और दर्द से राहत।
1. निदान परिहार (कारणों से बचाव)
- ठंडी हवा या नमी से बचें
- प्राकृतिक वेगों को न रोकें
- गर्म और पौष्टिक भोजन करें
- उपवास या अधिक व्यायाम न करें
2. स्नेहन (तेल चिकित्सा)
आंतरिक: क्षीरबला तेल (101) या महानारायण तेल का सेवन।
 बाह्य: प्रभावित स्थान पर हल्की मालिश करें —
- महा नारायण तेल
- धन्वंतरम तेल
- क्षीरबला तेल
3. स्वेदन (स्वेद चिकित्सा)
- नाड़ी स्वेद या पत्र पिंड स्वेद से दर्द और अकड़न में राहत।
- ट्राइजेमिनल और इंटरकोस्टल न्यूराल्जिया में विशेष लाभदायक।
4. बस्ति (औषध एनीमा)
वात रोगों में सर्वोत्तम उपचार।
- क्षीर बस्ति या मात्रा बस्ति — दशमूल तेल या महानारायण तेल से।
- यह नाड़ियों को पोषण देकर दर्द घटाता है।
5. नस्य (नाक में औषध तेल)
सिर या चेहरे के नाड़ी विकारों के लिए उपयोगी।
- अनु तेल या क्षीरबला तेल का नस्य।
- यह शिरो मार्ग (मस्तिष्क चैनल) को शुद्ध कर दर्द कम करता है।
6. शिरोधारा और शिरोधास्ति
- क्षीरबला तेल से शिरोधारा – मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र को शांत करती है।
- शिरोधास्ति – सिर की नसों को पोषण देती है।
7. आंतरिक औषधियाँ
- महारसनादि क्वाथ
- दशमूल क्वाथ
- एकांगवीर रस
- वातगजांकुश रस
- अश्वगंधा चूर्ण
- यष्टिमधु (मुलेठी)
- योगराज गुग्गुलु, सिंहनाद गुग्गुलु
ये औषधियाँ वात को संतुलित करती हैं, नसों को मजबूत और दर्द रहित बनाती हैं।
8. आहार एवं जीवनशैली
उपयुक्त आहार:
- गर्म दूध, घी, सूप
- मूंग दाल, खिचड़ी, उबली सब्ज़ियाँ
- अदरक, दालचीनी, अश्वगंधा वाली हर्बल चाय
बचें:
- ठंडा, सूखा, पैक्ड फूड
- अधिक कॉफी, शराब
- अनियमित भोजन और नींद
जीवनशैली सुझाव:
- शरीर को गर्म रखें
- हल्का योग और प्राणायाम करें
- तनाव से बचें
- प्रतिदिन तिल तेल या नारायण तेल से अभ्यंग (मालिश) करें
घरेलू उपचार
- प्रभावित स्थान पर गर्म सेक करें
- रात में 1 चम्मच अश्वगंधा चूर्ण गर्म दूध के साथ लें
- एरंड तेल (1 चम्मच) रात में – वात शमन हेतु
- लौंग तेल या कपूर तेल (पतला कर) लगाने से दर्द में आराम
योग थैरेपी (नसों को शांति और पोषण के लिए)
न्यूराल्जिया के उपचार में योग और प्राणायाम अत्यंत सहायक होते हैं। नियमित और सौम्य योगाभ्यास से तनाव कम होता है, मांसपेशियाँ लचीली बनती हैं और नसों को प्राकृतिक पोषण मिलता है। नीचे कुछ उपयोगी अभ्यास बताए गए हैं:
- गर्दन के हल्के व्यायाम (Neck rotations & side-bends): धीरे और नियंत्रित रूप से करें, तनाव कम करें।
- भुजंगासन (Cobra pose): रीढ़ और पीठ की नसों को पोषण देता है (डॉक्टर की सलाह से करें)।
- सुखासन में नाड़ी-शोधन प्राणायाम (Nadi Shodhana): तंत्रिका तंत्र को शांत करता है और वात संतुलन में मदद करता है।
- भ्रामरी प्राणायाम (Bhramari): सिर और चेहरे की नसों में आराम देता है और तनाव घटाता है।
- शवासन (Shavasana): गहन विश्रांति और रिकवरी के लिए सर्वोत्तम आसन।
सावधानी: प्रतिदिन 20–30 मिनट हल्का योग करें। तीव्र दर्द या नसों की गंभीर समस्या होने पर योग शुरू करने से पहले डॉक्टर की सलाह अवश्य लें। किसी भी आसन में दर्द या झुनझुनी बढ़े तो अभ्यास रोक दें।
दो वास्तविक उदाहरण
प्रकरण 1:
 45 वर्षीय महिला को ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया था।
 उन्हें क्षीरबला नस्य और महा नारायण तेल अभ्यंग दिया गया।
 30 दिनों में दर्द की तीव्रता में 80% कमी आई।
प्रकरण 2:
 58 वर्षीय मधुमेही पुरुष को पेरिफेरल न्यूराल्जिया था।
 उन्हें दशमूल क्वाथ, योगराज गुग्गुलु, और क्षीर बस्ति दी गई।
 21 दिनों में झुनझुनी और जलन 70% तक कम हो गई।
निष्कर्ष
न्यूराल्जिया या नाड़ी शूल मुख्यतः वातजन्य रोग है।
 आयुर्वेद के अनुसार वात शमन चिकित्सा, तेल और बस्ति थैरेपी, और नसों का पोषण इस रोग में अत्यंत लाभदायक हैं।
 नियमित तेल मालिश, पौष्टिक आहार, और तनाव नियंत्रण से दीर्घकालीन राहत प्राप्त की जा सकती है।
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अस्वीकरण (Disclaimer)
यह लेख केवल शैक्षणिक और जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें बताए गए आयुर्वेदिक उपचार, औषधियाँ या पंचकर्म प्रक्रियाएँ किसी योग्य आयुर्वेद चिकित्सक की देखरेख में ही अपनाई जानी चाहिए। हर व्यक्ति की प्रकृति और रोग की स्थिति भिन्न होती है, इसलिए परिणाम अलग-अलग हो सकते हैं। स्वयं दवा लेने या अपने चिकित्सक की सलाह के बिना इलाज बंद करने की कोशिश न करें। यदि दर्द या समस्या गंभीर हो, तो तुरंत योग्य विशेषज्ञ से संपर्क करें।
© सर्वाधिकार सुरक्षित — यह सामग्री लेखक (Dr. Nikul Patel – Consulting Ayurveda Doctor) की बौद्धिक संपत्ति है। बिना अनुमति पुनः प्रकाशन या कॉपी करना प्रतिबंधित है।

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